नो बॉल का नियम बदला, 25 साल में करियर खत्म, अब दुनिया छोड़ गया क्रिकेट का ये दिग्गज
Gordon Rorke: गॉर्डन रॉर्के, ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज, जिन्होंने 1959 में एशेज जीत में अहम भूमिका निभाई और जिनके विवादित रनअप ने नो-बॉल के नियम बदलने पर मजबूर कर दिया. महज 25 की उम्र में बीमारी ने उनका करियर खत्म कर दिया. 5 जुलाई 2025 को 87 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.

Gordon Rorke: कभी-कभी कोई खिलाड़ी मैदान पर इतना अलग होता है कि खेल के नियम ही बदलने पड़ते हैं. ऐसा ही नाम था ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज गॉर्डन रॉर्के का, जिन्हें उनकी ऊंचाई, खतरनाक रनअप और विवादित बॉलिंग एक्शन के लिए जाना गया. उनका क्रिकेट करियर लंबा नहीं चला, लेकिन इतना जरूर था कि उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को वो झटका दे दिया जिसने नियमों की दिशा ही बदल दी. 5 जुलाई 2025 को गॉर्डन रॉर्के ने 87 साल की उम्र में अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी कहानी क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में हमेशा जिंदा रहेगी.
जब एशेज में आया ब्लॉन्ड जायंट का तूफान
1959 की बात है. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज की कड़ी टक्कर चल रही थी. तभी एक युवा (6.5 फुट) तेज गेंदबाज टेस्ट डेब्यू करता है और अपनी पहली ही गेंदों में बड़े-बड़े नामों को पवेलियन भेज देता है. गॉर्डन रॉर्के का पहला टेस्ट एडिलेड में था, जहां उन्होंने इंग्लैंड के दिग्गज कॉलिन कॉड्री को आउट कर अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी. कई खिलाड़ियों के लिए डेब्यू बस एक शुरुआत होती है, लेकिन रॉर्के के लिए ये एक धमाका था. उनकी पारी ने मैच की दिशा बदल दी और ऑस्ट्रेलिया को एशेज ट्रॉफी जीतने में मदद मिली.
ऐसा रनअप जिसने बदलवा दिए नियम
रॉर्के का रनअप उनके क्रिकेट सफर की सबसे चर्चित चीज थी. उनका पिछला पैर इतना लंबा खिंचता था कि अक्सर नो बॉल की स्थिति बन जाती थी, लेकिन उस समय नियम इतने स्पष्ट नहीं थे. गेंद फेंकने से पहले ही उनका पैर पिच पार कर जाता था और कई बार बल्लेबाज खुद को असहज महसूस करने लगते थे. इंग्लिश मीडिया ने इसे ‘ड्रैगिंग’ कहा, वहीं कई क्रिकेटरों ने इसे थ्रो के करीब बताया. हालांकि यह सब वैधानिक था, लेकिन विवाद इतना बढ़ा कि आईसीसी को नो बॉल के नियमों की समीक्षा करनी पड़ी.
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बीमारी के बाद थम गया करियर
रॉर्के को भारत और पाकिस्तान के दौरे पर टीम में शामिल किया गया था. पाकिस्तान में वो प्लेइंग इलेवन में नहीं आए, लेकिन भारत में जैसे ही उन्हें मौका मिला, दुर्भाग्य ने दस्तक दी. कानपुर में हुए टेस्ट के दौरान वो गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. हेपेटाइटिस ने शरीर को ऐसा तोड़ा कि वह फिर कभी मैदान में गेंद नहीं डाल पाए. महज 25 साल की उम्र में उन्होंने क्रिकेट से अलविदा कह दिया. इस उम्र में जब खिलाड़ी खुद को साबित करने की तैयारी करते हैं, रॉर्के मैदान से बाहर हो चुके थे.
मैदान से बाहर भी जंग जारी रही
क्रिकेट छोड़ने के बाद भी उनकी जिंदगी आसान नहीं रही. घुटनों की तीन सर्जरी हुईं, लेकिन रॉर्के कभी टूटे नहीं. खेल से दूरी के बाद भी वो कहानियों और याजों के जिरिए क्रिकेट से जुड़े रहे. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने 88 विकेट लिए और न्यू साउथ वेल्स के लिए खेला, लेकिन उनका असली योगदान मैदान पर किए गए उस प्रभाव में था, जिसने खेल को नया आकार दिया.
तूफान की तरह आया और चला गया
गॉर्डन रॉर्के का करियर छोटा था, लेकिन उसका असर लंबे समय तक क्रिकेट पर छाया रहा. वह खिलाड़ियों की उस लिस्ट में शामिल हुए जिन्होंने अपने दम पर क्रिकेट के नियमों को बदला. उनका जाना केवल एक पूर्व क्रिकेटर की मृत्यु नहीं, बल्कि क्रिकेट इतिहास के एक ऐसे अध्याय का अंत है जो शायद फिर कभी ना लिखा जाए.
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