बैडमिंडन स्टार साइन नेहवाल और पारुपल्ली कश्यप ने अलग होने का लिया फैसला, 7 साल पहले हुई थी शादी
भारतीय बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल और उनके पति पारुपल्ली कश्यप ने सात साल की शादी के बाद अलग होने का फैसला किया है. साइना ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा की. लंबे समय से साथ ट्रेनिंग करने वाले इस कपल ने भारत को ओलंपिक और कॉमनवेल्थ जैसे मंचों पर भारत का परचम लहराया है. पढ़ें पूरी खबर...

Saina Nehwal: भारतीय बैडमिंटन की दिग्गज खिलाड़ी साइना नेहवाल और उनके पति पारुपल्ली कश्यप ने एक-दूसरे से अलग होने का फैसला किया है. शादी के सात साल बाद दोनों ने इस रिश्ते को खत्म करने की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए साझा की. साइना ने इंस्टाग्राम के जरिए अपने फैंस को जानकारी दी.
साइन ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा कि अब वे और कश्यप अपनी-अपनी जिंदगी में मानसिक शांति और आत्म-विकास को प्राथमिकता देते हुए अलग राह पर चलने का निर्णय ले चुके हैं. यह फैसला दोनों ने आपसी बातचीत और सोच-विचार के बाद लिया.

साल 2018 में की थी शादी
बैडमिंटन की दुनिया में खिलाड़ियों के बीच रिश्ता कोई नई बात नहीं है. लेकिन साइना और कश्यप की कहानी इसलिए खास रही क्योंकि यह एकदूसरे की प्रतिस्पर्धा होने के बावजूद सहयोग की मिसाल बनी रही. दोनों ने 1997 में साथ एक कैंप से शुरुआत की और 2002 में नियमित ट्रेनिंग पार्टनर बने. दोनों साल 2018 में शादी के बंधन में बंधे. इस रिश्ते ने भारतीय खेलों को यह दिखाया कि जब दो चैंपियन एक-दूसरे का सहारा बनते हैं, तो नतीजा सिर्फ मेडल तक सीमित नहीं रहता है.

8 की उम्र में बैडमिंटन की दुनिया में रखा कदम
साइना नेहवाल का जन्म 17 मार्च 1990 को हरियाणा में हुआ था. उन्होंने आठ साल की उम्र में हैदराबाद में बैडमिंटन खेलना शुरू किया था. साइना और कश्यप का रिश्ता बैडमिंटन प्रेमियों के लिए सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं थी. यह भारतीय बैडमिंटन की उस पीढ़ी का चेहरा था जिसने ओलंपिक, कॉमनवेल्थ और सुपर सीरीज जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का परचम लहराया.
कपल ने लहराया भारत का परचम
साइना ने 2012 में ओलंपिक कांस्य जीतकर इतिहास रचा था. वह बैडमिंटन में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं. वह बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय और BWF विश्व जूनियर चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय भी हैं. वहीं कश्यप ने 2014 में कॉमनवेल्थ गोल्ड हासिल कर भारतीय पुरुष बैडमिंटन को नई पहचान दी.
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