---Advertisement---

 
अन्य खेल

Happy Birthday Dhanraj Pillay: हॉकी स्टिक के लिए नहीं थे पैसे लेकिन नहीं मानी हार, 4 बार खेले ओलंपिक

धनराज पिल्ले ने अपने करियर में चार ओलंपिक (1992, 1996, 2000 और 2004), चार विश्व कप (1990, 1994, 1998 और 2002) और चार चैंपियंस ट्रॉफी (1995, 1996, 2002 और 2003) खेले. इसके अलावा उन्होंने साल 1990, 1994, 1998 और 2002 में एशियन गेम्स भी खेला.

Dhanraj

Happy Birthday Dhanraj Pillay: तारीख थी 16 जुलाई 1968, पुणे के पास एक छोटा सा शहर खड़की में एक बच्चे का जन्म होता है, एक साधारण से परिवार में जन्मा लड़का, जिसकी झोली में ना पैसे थे, ना संसाधन, ना ब्रांडेड जूते और ना ही चमचमाती हॉकी स्टिक. लेकिन फिर भी उसकी आंखों में भारत के लिए खेलने का सपना था. बच्चे का नाम धनराज रखा गया. शायद माता-पिता को भी अंदाजा नहीं था कि यही बच्चा एक दिन चार-चार ओलंपिक खेलेगा और भारतीय हॉकी का चेहरा बन जाएगा.

धनराज पिल्लै का बचपन किसी परीकथा की तरह नहीं था. उनके पिता नागालिंगम पिल्लै पेशे से ग्राउंड्समैन थे. तीन बड़े भाइयों के बाद जब धनराज पैदा हुए, तो परिवार की हालत और भी तंग हो गई थी. लेकिन किस्मत ने उन्हें एक ऐसे माहौल में रखा, जहां हॉकी हवा में तैरती थी. खड़की की गलियों में शाम होते-होते हॉकी स्टिक की टकराहट सुनाई देती थी. लेकिन जब बच्चे चमचमाती स्टिक से खेलते थे, धनराज के पास एक जर्जर सी पुरानी स्टिक होती थी, वही उनकी पहली साथी थी.

---Advertisement---

भाई से की थी स्टिक की फरमाइश

धनराज ने एक दिन अपने भाई से नई स्टिक की फरमाइश की. भाई ने कहा, ‘तू खेलता रह, एक दिन स्टिक तेरे पास खुद चलकर आएगी.’ भाई की बात सुनने के बाद धनराज की असली प्रैक्टिस शुरू हुई. धनराज के भाई रमेश पिल्लै मुंबई के एक हॉकी क्लब से जुड़े हुए थे. जब टीम को एक खिलाड़ी की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने धनराज को मौका दिलाया. शुरू में एक्स्ट्रा प्लेयर के तौर पर चुने गए धनराज, जल्द ही अपनी रफ्तार, तकनीक और जुनून से टीम के जरूरी खिलाड़ी बन गए.

1987 के संजय गांधी टूर्नामेंट में दिल्ली की भीड़ ने पहली बार इस दुबले-पतले लड़के को गौर से देखा. राजिंदर सिंह जैसे अनुभवी डिफेंडर की आंखों के सामने से बॉल निकालकर गोल मारना किसी चमत्कार से कम नहीं था. वहां से शुरू हुई एक लकीर, जो अगले 16 साल तक भारतीय हॉकी का पर्याय बन गई.

---Advertisement---

बने भारतीय हॉकी के ओलंपिक योद्धा

1989 में एल्विन एशिया कप के जरिए धनराज ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी में कदम रखा. इसके बाद उन्होंने जो किया, वो केवल आंकड़े नहीं, संघर्ष से भरे इतिहास हैं. धनराज पिल्लै, 1994 वर्ल्ड कप में वर्ल्ड इलेवन टीम में शामिल होने वाले एकमात्र भारतीय बने.

साल 2004 में लिया संन्यास

1998 के एशियन गेम्स, बैंकॉक में धनराज पिल्लै के नेतृत्व में भारत ने गोल्ड जीता था. 2003 में उन्होंने भारत को एशिया कप दिलाया. मैदान में उनकी रफ्तार बिजली जैसी होती थी और आंखों में सिर्फ देश के लिए जीतने की चमक. 2004 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास लिया. लेकिन उनके 16 साल के करियर में जो जादू उन्होंने दिखाया, वह आज भी हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा का नक्शा है. उन्हें साल 2000 में भारत का सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न मिला और साल 2001 में पद्मश्री मिला.

ये भी पढ़ें:- मैराथन की मिसाल फौजा सिंह नहीं रहे, 114 साल की उम्र में सड़क हादसे में निधन

HISTORY

Written By

Vikash Jha


Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.