जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा के नाम पर ‘नीरज चोपड़ा क्लासिक भाला फेंक प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है. हरियाणा के पंचकूला स्थित ताऊ देवी लाल स्टेडियम में 24 मई से इस टूर्नामेंट के पहले संस्करण की शुरुआत हो रही है. वर्ल्ड एथलेटिक्स ने इसकी जानकारी दी है. इस प्रतियोगिता को NC क्लासिक के रूप में नामित किया गया है और इसे वर्ल्ड एथलेटिक्स द्वारा ‘ए’ श्रेणी का इवेंट घोषित किया गया है, जो कि कोंटिनेंटल टूर गोल्ड स्तर की प्रतियोगिता के बराबर है.
क्या है कोंटिनेंटल टूर?
कोंटिनेंटल टूर विश्व एथलेटिक्स सर्किट की दूसरी श्रेणी की वैश्विक प्रतियोगिता है, जो डायमंड लीग के बाद आती है. इसे 2020 में वर्ल्ड चैलेंज सीरीज के उत्तराधिकारी के रूप में शुरू किया गया था और इसमें चार स्तर शामिल हैं: गोल्ड, सिल्वर, ब्रॉन्ज़ और चैलेंजर.
नीरज चोपड़ा होंगे टूर्नामेंट का चेहरा
भारत के स्टार भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा इस टूर्नामेंट का चेहरा होंगे. यह पहली बार होगा जब दुनिया के शीर्ष पुरुष और महिला भाला फेंक खिलाड़ी भारत में इस स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेंगे.
पूर्व एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अडिले सुमारीवाला ने पहले कहा था कि इस इनविटेशनल टूर्नामेंट में पुरुष और महिला श्रेणी के विश्व के शीर्ष 10 भाला फेंक खिलाड़ियों की उपस्थिति रहेगी. नीरज चोपड़ा इस इवेंट को विश्व एथलेटिक्स कैलेंडर में हर साल का महत्वपूर्ण आयोजन बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसमें और अधिक ट्रैक और फील्ड इवेंट्स को शामिल करने पर भी विचार कर रहे हैं.
नीरज चोपड़ा ने क्या कहा था?
नीरज चोपड़ा ने इस साल की शुरुआत में कहा था, “भारत में विश्व-स्तरीय भाला फेंक प्रतियोगिता आयोजित करना मेरा लंबा सपना रहा है. मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे साथी खिलाड़ी और भारत के प्रशंसक मिलकर इस आयोजन को यादगार बनाएंगे. मैं देखना चाहता हूँ कि हम इसे कितनी बड़ी सफलता बना सकते हैं.”
नीरज चोपड़ा का हालिया प्रदर्शन
नीरज चोपड़ा को आखिरी बार भारतीय धरती पर 2024 में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय फेडरेशन सीनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में देखा गया था, जहां उन्होंने 82.27 मीटर का भाला फेंका था. पेरिस 2024 ओलंपिक की तैयारी के दौरान नीरज ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन वह अपने स्वर्ण पदक को बरकरार रखने में असफल रहे और रजत पदक जीता था. उन्होंने 89.45 मीटर की सबसे लंबी फेंक के साथ पदक जीता, हालांकि चार लगातार फाउल थ्रो के कारण स्वर्ण पदक हासिल करने में मुश्किल का सामना करना पड़ा.
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